
आज तुम्हारी रचनाएं पढ़ीं
अल्फ़ाज़ों की तासीर को
समझने की कोशिश की
सच पूछो
तो
महसूसा मैंने खुद को
उस क्षत्रिय की तरह
जो युद्ध के मैदान से
हार के लौट आए
और नज़र न मिला सके
स्वयं अपने आप से
या फिर
उस बेकसूर की तरह
जो कटघरे में खड़ा होता है
अपना हलफनामा लेकर
न्याय की आस में
मन मस्तिष्क की धुरी पर
मानों विराम सा लगा दिया हो
एक एक शब्द ने
ऐसा लगा
जैसे
असीमित अर्थों वाली कविताओं का
साक्षी बन गया हूं,
और
अपराधी भी !
अल्फ़ाज़ों की तासीर को
समझने की कोशिश की
सच पूछो
तो
महसूसा मैंने खुद को
उस क्षत्रिय की तरह
जो युद्ध के मैदान से
हार के लौट आए
और नज़र न मिला सके
स्वयं अपने आप से
या फिर
उस बेकसूर की तरह
जो कटघरे में खड़ा होता है
अपना हलफनामा लेकर
न्याय की आस में
मन मस्तिष्क की धुरी पर
मानों विराम सा लगा दिया हो
एक एक शब्द ने
ऐसा लगा
जैसे
असीमित अर्थों वाली कविताओं का
साक्षी बन गया हूं,
और
अपराधी भी !
3 टिप्पणियां:
kya bat hai sir ji.........
maza aa gaya...
apni bat kahne ka andaaz nirala hai.......
abhibyakti ho to aisi...
mureed ho gaya hu aapki kavitaaoo ka........
meri badhayi svikaren.
WOW THAT WAS A DEEP POETRY, KEEP WRITING....
एक अंधेरा, एक ख़ामोशी, और तनहाई,
रात के तीन पांव होते हैं।
ज़िन्दगी की सुबह के चेहरे पर,
रास्ते धूप छाँव होते हैं।
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