
तड़पता दिन
छटपटाती शाम
और फिर उमस भरी रात,
प्रमाण है उस संघर्ष का
जो
शिद्दत से जारी है
बदस्तूर,
कपट के शोर
और भ्रष्टाचार के सैलाब की
प्रतिध्वनि
श्रवण शून्य सी
कर देती है
पथिक को
विषाद भर जाता है
उन खूंटियो में
जिन पे टंगा है
लक्ष्य,
टूटते बिखरते
ख्वाबों के खपरैले की
नींव के पत्थर
सहमें हैं
डरे हैं
कहीं ढह न जाए
घरौंदा विश्वास का
क्या इतनी पैनी हो गई है
समय की कुल्हाड़ी
कि काट के कतरन में बदल दे
आत्मविश्वास की जड़ को
शायद...................
छटपटाती शाम
और फिर उमस भरी रात,
प्रमाण है उस संघर्ष का
जो
शिद्दत से जारी है
बदस्तूर,
कपट के शोर
और भ्रष्टाचार के सैलाब की
प्रतिध्वनि
श्रवण शून्य सी
कर देती है
पथिक को
विषाद भर जाता है
उन खूंटियो में
जिन पे टंगा है
लक्ष्य,
टूटते बिखरते
ख्वाबों के खपरैले की
नींव के पत्थर
सहमें हैं
डरे हैं
कहीं ढह न जाए
घरौंदा विश्वास का
क्या इतनी पैनी हो गई है
समय की कुल्हाड़ी
कि काट के कतरन में बदल दे
आत्मविश्वास की जड़ को
शायद...................
3 टिप्पणियां:
आत्मविश्वास एक महाशक्ति है...ये जिसके पास होती है वह सबसे बहादुर होता है.....जिसे समय की पैनी कुल्हाड़ी तो क्या सुदर्शन भी नही काट सकता....आपकी रचना बहुत सुंदर
है.. बधाई स्वीकार करें
वह पथ क्या पथिक कुशलता क्या
जिस पथ में बिखरे शूल न हो
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या
जब धाराएं प्रतिकूल न हो....
कविता का शाब्दिक प्रवाह और उत्कृष्ठ सोच काबिले तारीफ है
बधाई हो....
अभिव्यक्तियां
सांझ ढलते ढलते मेरे पदचाप ले गई
मेरी झोली में गुलमोहर व बबूल के फूल दे गई
तुम्हारी याद आई तो भीगी पलकों की जगह
नीले आसमान की गहराई दे गई
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