बुधवार, 13 मई 2009


तीव्र गति से घूमते
वक़्त के पहिए की
तीलियों में फंसा
मेरा अतीत,
आज भी
चीख उठता है
जब,
तुम्हारी याद आ जाती है।

सामान्य सा अंधेरा
अपना चेहरा
अमावस की रात में
परिवर्तित कर लेता है,
आंधियां तूफान बन जाती हैं,
और,
भयावह स्वप्न से दो चार करके
छोड़ जाती हैं मुझे,
जब तुम्हारी याद आ जाती है।

पटरियों पर दौड़ती
रेल की कर्कश ध्वनि,
और
समंदर की उफनाती लहरों का शोर,
खामोश हो जाता है
मेरी खामोशी की तरह,
जब,
तुम्हारी याद आ जाती है।

जीवन की बंजर ज़मीन पर
उग आए कांक्रीट के पौधों में भी
रवानी दौड़ जाती है,
हरे हो जाते हैं
असली पौधों की तरह
बगैर खाद पानी दिए,
जब
तुम्हारी याद आ जाती है।

जब
तुम्हारी याद आ जाती है।

3 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

दिल में उमड़ते समंदर की लहरों का
शोर शब्दों में दिख रहा है.

प्रकाश गोविंद ने कहा…

जीवन की बंजर ज़मीन पर
उग आए कांक्रीट के पौधों में भी
रवानी दौड़ जाती है,

bahut achhi aur pathneey kavita
shabdon ka jaadu bikherna
aapko khoob aata hai

meri shubhkamnayen

KK Yadav ने कहा…

बहुत सुन्दर लिखा आपने..उम्दा प्रस्तुति के लिए साधुवाद !!
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विश्व पर्यावरण दिवस(५ जून) पर "शब्द-सृजन की ओर" पर मेरी कविता "ई- पार्क" का आनंद उठायें और अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराएँ !!