
ये कैसा प्रेम ?
और कैसी पीड़ा ?
जिसे न तो बताने का साहस है
और न ही छुपाने का सामर्थ्य
उफान लेते
ज़ज्बातों के तूफान को
कब तक रोक कर रखूँगा मै
मन के धरातल में
कभी न कभी
कहीं न कहीं
आएगा भूचाल
मचल उठेगी अंतर्ज्वाला
और
जला के रख देगी
हर उस चादर को
जिसे ओढ़कर
अपने आप को
सुरक्षित समझता हूँ।
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