
मेरी अंतरात्मा ने चुने हैं कुछ शब्द
मथानी सा मथकर
संजोया संवारा सजाया
पालपोस कर बड़ा किया
बिलकुल वैसे ही
जैसे
किसी अंकुरित बीज को
पौधा
और पौधे से पेड़ बनाया जाए
फिर
आकार देने की जद्दोजहद में जुट गया
स्याह सुर्ख सी शाम
और
छितिज से पार जाते हुए
सूरज की लालिमा की तरह
खूबसूरत बनाया
हृदय की धमनियों से सींचकर
तैयार किया
फिर उसे एक नाम मिला
कविता
“ये मेरी कविता”
मथानी सा मथकर
संजोया संवारा सजाया
पालपोस कर बड़ा किया
बिलकुल वैसे ही
जैसे
किसी अंकुरित बीज को
पौधा
और पौधे से पेड़ बनाया जाए
फिर
आकार देने की जद्दोजहद में जुट गया
स्याह सुर्ख सी शाम
और
छितिज से पार जाते हुए
सूरज की लालिमा की तरह
खूबसूरत बनाया
हृदय की धमनियों से सींचकर
तैयार किया
फिर उसे एक नाम मिला
कविता
“ये मेरी कविता”
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