रविवार, 22 मार्च 2009


‘प्रेम‘
कहने सुनने और
देखने में
एक सरल सरीखा शब्द
पर
समेटे हुए है अपने आप में
कुछ सहमें हुए रिश्ते
कुछ अनकहे जज़्बात
कुछ आशाएं कुछ विश्वास
नभ सी उंचाई और सागर सी गहराई
लेकिन
निश्चल, पावन प्रेम को
धूल धूसरित कर दिया है
आधुनिकता ने
फेंक दिया गया
घूमती पृथ्वी के किसी कोने में
मैले कुचैले लत्ते की तरह
बदल दिया गया है
प्रेम के पर्याय को
अर्थ को
परिभाषा को
बेच दी गई है इसकी यथार्थता
दमन कर दी गई हैं भावनाएं
शायद इसीलिए
शर्मसार होना पड़ रहा है
सच्चे प्रेम को
या
यूं कहें कि
भाग रहा है अपनी अस्मत बचाकर
सच्चा प्रेम !

2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

khoobsoorat....
bahut hi khoobsoorat hai aapki rachna
vartman samay me prem ki paribhasha vastav me badal di gayi hai,,,,
badhayi ho aapko is sundar rachna k liye

Unknown ने कहा…

aapki rachna baht achhi hai...
jitni tareef ki jaye kam hai...
lekin aisa mera sochna hai ki aaj bhi sachhe prem ko ,kisi samaj k sahare ki zaroorat nahi hai