रविवार, 30 मई 2010

उन्हें आजादी चाहिए

उन्हें आजादी चाहिए
मेरी भावनाओं की सलाखों से
उन्हें आजादी चाहिए
हर उस लम्हें से जिससे मेरा नाम जुड़ा हो
अब वो सांस भी लेना नहीं पसंद करेंगें उन हवाओं में,
जिनमें मेरे नाम की खुश्बू घुली हो,
उन्होने भुला दिया है
हर उस बात को जिसमें मेरा जिक्र था
लेकिन अब
उनकी पैनी नज़र मेरे एहसासों पर है
वो ढहा देना चाहते हैं मेरे एहसासों को
किसी कच्चे मकान की तरह

उन्हें आजादी चाहिए
किसी भी कीमत पर।

6 टिप्‍पणियां:

अजित त्रिपाठी ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
hem pandey ने कहा…

पर क्या इस आजादी से वे खुश रह पायेंगे ?

बबिता अस्थाना ने कहा…

ये तुम्ही ने मुझे पहले पढ़ाई थी....काफी ख़ूबसूरत है बहुत ख़ूब तालमेल बिठाया है आज़ादी और भावनाओं के बीच...
इसी तरह ख़ूबसूरती से लिखते रहो....मेरी शुभकामनाएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं....

Unknown ने कहा…

बेहद उम्दा रचना।
दादा जब भी आप आते हैं एक नई फीलिंग के साथ आते हैं।
इस रचना के लिए धन्यवाद।

Unknown ने कहा…

छा गए गुरु।
लगता है एक बार फिर टूटा है दिल..।
जितनी बार तुम्हारा दिल टूटता है एक मस्त रचना पढ़ने को मिलती है।

अजित त्रिपाठी ने कहा…

सबसे पहले उत्साहवर्धन के लिए सबका बेहद शुक्रिया...।
फिर हेम पांडेय जी जवाब..पांडेय जी,आजादी तो आजादी होती है..जा़हिर सी बात है आजादी सबको प्यारी होती है...आशा है जवाब मिल गया होगा...।
और दिव्या तुम्हारे लिए सिर्फ....हा हा हा हा हा हा....।