रविवार, 16 अगस्त 2015

कच्चा मकान

बहुत चुभता है जिगर में किसी खंजर की तरह
ये जो मौसम है मेरे सर पे समंदर की तरह
ये जो बादल हैं गरजते हुए चिल्लाते हुए
देखकर लगता है डर बिजली तड़प जाते हुए
कोई तो रोक ले ये टूटकर गिरती बूंदे
शहर के बीच खड़ा नौजवान कहता है

मेरे सीने में इक कच्चा मकान रहता है

बुधवार, 24 जुलाई 2013

अजी छोड़िए

अजी छोड़िए
कौन सजाए सपने फिर से
पलके बोझिल कौन करे
कौन लगाए सांस पे पहरे
कौन जले तिल तिल
जागे कौन रात भर फिर से
कौन लगाए दिल
अजी छोड़िए
अब मोहब्बत की बात
आइए जीते हैं यायावर बनकर...

सोमवार, 15 जुलाई 2013

भूख बड़ी ज़ालिम होती है

1
भूख बड़ी ज़ालिम होती है
वो...जो कल तक
अच्छा खासा इंसान था
मासिक धर्म में
इस्तेमाल किए गए
कपड़े की तरह
सड़क पर फेंका गया
पेट की अंतड़ियों ने
भीतर भूगोल बना लिया
और
वो अच्छा खासा इंसान
एक दाने के लिए सड़क पर
यूं बैठ गया
जैसे बैठ जाता है
मुर्दा चांद
किसी शोकाकुल छत पर
निरर्थक होकर...

2

भूख बहुत ज़ालिम होती हैउसमें न कसक होती है
न लचक होती है
मैंने सोचा
देखकर उस पागल इंसान को
जैसे देख रहा हूं
भूख से बिलखते
हिंदुस्तान को....

3

भूख बहुत ज़ालिम होती है
ये जानती है
हमारी सरकार भी
इसलिए
कभी वोट की राजनीति करती है
कभी पेट की
इस बार पेट का पाखंड है
खाना चाहिए तो लगाना होगा
पंजे पर ठप्पा
वरना भूख का दंड है
सड़क पर आओगे
और
कुत्ते की मौत मारे जाओगे....

...........................

शुक्रवार, 14 जून 2013

तुम्हारे स्त्रित्व को शब्द देना
उन्हें कागज़ पर उकेरना
उतना ही मुश्किल है
जितना
तुम्हारे सामने
ब्रह्मचर्य को बचाए रखना
या
यूं समझो
कि तुम्हारा सौंदर्य
मेरे पुरुषार्थ को महीन कर देता है
अनायास ही
मन के किसी कोने को
चरित्रहीन कर देता है...

सोमवार, 7 जनवरी 2013



सर्दी का सितम बदस्तूर जारी है...पूस की रात...कहर बनकर बरप रही है...सर्द हवाओं की एक चादर फैल गई है..जिसने जीवन की रफ्तार पर लगाम लगा दी है....गंगा की लहरों पर लिख गई हैं ठिठुरन की दास्तां....और इस दास्तां को पढ़ने और समझने के लिए घाटों से नदारद हो गए हैं...गंगापुत्र....तापमान का स्तर नेतांओं के बयान की तरह दिन ब दिन नीचे होता जा रहा है....दस जनवरी तक वाराणसी के जिलाधिकारी महोदय ने स्कूलों के बंद करने के आदेश दे दिए हैं...लेकिन मैसम विभाग के लोग कह रहें हैं कि फिलहाल प्रचंड ठंड जारी रहेगी...कहते हैं...हवा का तेज़ खंजर सबसे ज्यादा बुढ़ापे में काटता है...लेकिन हवाएं जब बर्फ की बयार बनकर बहें...तो क्या महिलाएं...क्या पुरुष... क्या नौजवान...क्या बच्चे...क्या बूढ़े...सब त्राहिमाम करते नजर आ रहें हैं....जिस गली पर... जिस चौराहे पर आग की शक्ल भी नजर आती है...चार हाथ उसे सेंक लेना चाहते हैं.....कहते हैं सर्दी जानलेवा होती है...लेकिन माफ कीजिएगा साहब... सर्दी कतई जानलेवा नहीं होती...वरना सर्द प्रदेशों में रहने वाले लोग मर गए होते...जानलेवा होती है शासन प्रशासन की बदइंतजामी...यहा भी नगर निगम और जिला प्रशासन द्वारा भीषण ठण्ड से बचने के लिए न कोई व्यवस्था की गई न रैन बसेरा का समुचित इंतजाम...सूबे की सरकार ने हिदायत दी है कि...शेल्टर होम दिन रात खोले जाएं...कंबल बांटे जाएं.... हर चौराहे और बस अड्डों पर दिन रात अलाव जले...लेकिन हिदायत का क्या है...अक्सर दी जाती है....
ये तेज सर्द हवा ये ठिठुरन भरा मौसम
खुदा कसम ये जनवरी अब जानलेवा है

शनिवार, 3 नवंबर 2012

किसी ने नाराज होकर
खींच दी एक लकीर
लकीर
अमरबेल की तरह
चढ़ती गई
और 
दो दिलों के बीच
दूरियां बढ़ती गई
तुम्हारा दिल
और मेरा भी दिल
अब परेशान है
एक हिंदू है
दूसरा मुसलमान है...

रविवार, 11 दिसंबर 2011

पसीने से परिंदे तर-बतर हैं।
फिज़ाएं तल्ख़ से भी तल्ख़-तर हैं॥

ज़माना हो गया सूनामी आए।
मगर कुछ लोग अब तक दर-बदर हैं॥

हवा मत दे तू इस चिंगारी को प्यारे।
तुझे मालूम नहीं पास में तेरा भी घर है॥

तुम्हारा घर जले या लोग जलें।
भला किसको यहां किसकी ख़बर है॥

बड़े कमजोर दरवाजे हैं घर के।
किसी दिन छोड़ दे न साथ ये मुझको भी डर है॥

है उसके हाथ में मीठी कटारी।
मैं जिसको सोचता हूं हमसफर है॥

अजित "अप्पू"