गुरुवार, 22 जुलाई 2010

मेरी कलम ।

कभी आगाज़ लिखती है कभी अंजाम लिखती है !
दोपहरी को सुबह और फिर सुबह को शाम लिखती है !!

मेरी पागल कलम पर जाने क्या जादू किया उसने !
इसे जब भी उठाता हूं तो उसका नाम लिखती है !!

मैं कहता हूं कि रुक जा मान जा मत कर यूं रुसवाई !
मगर मुझसे ख़िलाफत कर मुझे बदनाम लिखती है !!

नशेड़ी इस कदर की सर उठा ले सारी मधुशाला !
ये खुद बन जाती पैमाना मुझे फिर जाम लिखती है !!

ये मेरी है मगर फिर भी बगावत देखिए मुझको !
कभी पंडित बनाती है कभी ईमाम तिखती है !!

मुझे तो लगता है कि गीत गोविंद पढ़ के आई है !
इसे मीरा बनाती है मुझे घनश्याम लिखती है !!

नोट: गीत गोविंद मीराबाई की रचना है जिसमें मीरा और श्याम की प्रेम कहानी है।

4 टिप्‍पणियां:

Dr.J.P.Tiwari ने कहा…

मेरी पागल कलम पर जाने क्या जादू किया उसने !
इसे जब भी उठाता हूं तो उसका नाम लिखती है !!

मैं कहता हूं कि रुक जा मान जा मत कर यूं रुसवाई !
मगर मुझसे ख़िलाफत कर मुझे बदनाम लिखती है !!

bhaiya thoda hosh me aao athaw poor poora doob jaao. yah beech ki sthiti ghatak hai. achchhi rachna, prem ko paribhaashit karti huii.

बबिता अस्थाना ने कहा…

मैं कहता हूं कि रुक जा मान जा मत कर यूं रुसवाई !
मगर मुझसे ख़िलाफत कर मुझे बदनाम लिखती है !!
बहुत ख़ूब लिखा है.........मान गये अजीत बाबू....

अंजना ने कहा…

मेरी पागल कलम पर जाने क्या जादू किया उसने !
इसे जब भी उठाता हूं तो उसका नाम लिखती है !!

मैं कहता हूं कि रुक जा मान जा मत कर यूं रुसवाई !
मगर मुझसे ख़िलाफत कर मुझे बदनाम लिखती है !!


वाह बहुत खुब ...

अजित त्रिपाठी ने कहा…

उत्साहवर्धन के लिए
आभार...सभी का दिल से धन्यवाद।