गुरुवार, 9 सितंबर 2010

बेहद करीबी चंद शेर।

अब शक की निगाहों से मुझे द्खते हैं वो,
कल तक जो मेरी बांह का तकिया लगाते थे।।

ज़रा सा ख़ौफ अब मुझको नहीं तेरी जुदाई का
इन आखों में कई सैलाब ठहरने लगे हैं अब ।।

कयामत ये नहीं की दूर होकर भी वो मेरा है,
वो पास आकर मुझे जब गैर कह दे तब क़यामत है।।

बहुत दिन बाद फिर से आज उनकी याद आयी है,
मुझे मालूम है कि आज मेरी रात न होगी।।

मैं जिसकी याद में सब कुछ लुटाए फिरता हूं,
मुझे यकीन है कि एक दिन वो बेवफा होगा।।

न जाने कौन सा रिश्ता है बन गया तुझसे,
न हो तू पास तो कुछ खोया खोया रहता है।।

रेगिस्तान की भूमि पर मैं स्नेह बो रहा हूँ,
एक न एक दिन इस ज़मीन पर प्रेम का पौधा पनपेगा !!

जब भी मुझको दर्द हो तो क्यूं तड़प उठती है वो
या खुदा तूने,ये कैसा कनेक्शन कर दिया।।

रोज़ उनकी याद में तिल तिल जला जाता हूं मैं,
राख जब बन जाउंगा तो याद उनको आएगी।।

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