गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

तुम और मेरा फोन...

तुम्हारे जाने का दर्द
आज फिर हरा हो गया
विचलित हो उठा मन
आज फिर
बिलकुल वैसे
जैसे
तड़प उठा था बहुत पहले
जब
तुमने मेरा साथ छोड़ा था
वही असहनीय पीड़ा
आज फिर महसूस हुई
जब
कुछ घंटो के लिए मुझसे
मेरा फोन दूर हो गया
लगा
एक बार फिर
तुम मुझसे दूर हुई हो...।

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

अजित जी...महबूबा के माफिक मोहब्बत करने लगे फोन को...धन्य हो प्रभु...तोहर नइखे कौनो जोड़ तू बेजोड़ बाटु हो....

Unknown ने कहा…

bahut sahi ajit...bahut achha hai,pyar vyar mt kiyo,agar karna hi hai toh phon se karta rah...

Unknown ने कहा…

mhbbt mhbbt mhbbt vah ji vah....

shuhani sham ने कहा…

हा हा हा...हद है...बड़ा कवि हो गया है तू अब,जो भी लिख देता है कविता बन जाती है...।

sandeep upadhayay ने कहा…

yar agar tumhara phone chori ho jae to kya karoge.

अजित त्रिपाठी ने कहा…

ek kavita uar likh jayegi snadeep....