शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

होश में न आने दे हमको तू साकी रात भर ।
हमको पीने दे पिलाने दे तू साकी रात भर ।।
तेरा मयखाना, सुना है सारे जख़्मों की दवा ।
अपनी मधुशाला में रुक जाने दे साकी रात भर।।

2 टिप्‍पणियां:

समयचक्र ने कहा…

ओह क्या बात है पंडित जी .... बहुत खूब ...

अजित त्रिपाठी ने कहा…

शुक्रिया मिश्रा जी...