ज़िंदगी कट रही थी रोज़ का रो़ज़,जस का तस,मैंने समझने की कोशिश की तो पन्ने बनने लगे। आप भी पलटें और रुबरु हों मेरी ज़िंदगी से।
अधूरी नहीं बल्कि बेहतरीन कविता
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