रविवार, 16 अगस्त 2015

कच्चा मकान

बहुत चुभता है जिगर में किसी खंजर की तरह
ये जो मौसम है मेरे सर पे समंदर की तरह
ये जो बादल हैं गरजते हुए चिल्लाते हुए
देखकर लगता है डर बिजली तड़प जाते हुए
कोई तो रोक ले ये टूटकर गिरती बूंदे
शहर के बीच खड़ा नौजवान कहता है

मेरे सीने में इक कच्चा मकान रहता है

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

बहुत खूब ...